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नई खोज : 43 करोड़ साल से लग रही जंगलों में आग, वैज्ञानिकों ने खोज निकाली वह जगह

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जंगलों में लगने वाली आग ने हाल के वर्षों में जानवरों और स्थानीय लोगों के लिए खतरा पैदा किया है। आपको जानकर हैरानी होगी कि जंगलों में आग करोड़ों वर्षों से लगती रही है। वैज्ञानिकों ने दुनिया के सबसी पुरानी जंगल की आग की खोज की है। वेल्स (Wales) और पोलैंड (Poland) में पाए गए 43 करोड़ वर्ष पुराने चारकोल की मदद से इसका पता चला है। यानी 43 करोड़ साल पहले जंगलों में आग लगती थी। इससे पता चलता है कि सिलुरियन (Silurian period) काल के दौरान पृथ्वी पर जीवन कैसा था। उस समय पौधे का जीवन दोबारा जीवन के लिए काफी हद तक पानी पर निर्भर होता था। सूखे इलाकों में पौधों के पनपने की संभावना नहीं होती थी। तब जंगलों में आग ज्‍यादातर बार छोटी वनस्‍पति के जरिए ही लगती थी।  रिसर्चर्स के अनुसार, प्राचीन फंगस ‘प्रोटोटैक्साइट्स' (Prototaxites) पेड़ों के बजाए पर्यावरण पर हावी रहे होंगे। इनके सटीक आकार का तो पता नहीं, पर कहा जाता है कि यह लगभग 30 फीट की ऊंचाई तक रहे होंगे।  रिपोर्ट के अनुसार, जंगल की आग को लंबे समय तक टिके रहने के लिए ईंधन की जरूरत होती होगी। यह काम पौधे करते होंगे। इसके अलावा, आग लगने के लिए ब...

वैज्ञानिकों ने खोज निकाले पृथ्‍वी जैसे दो ग्रह, क्‍या मुमकिन होगी एक और दुनिया?

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पृथ्‍वी से बाहर जीवन की खोज और पृथ्‍वी जैसे ग्रहों की तलाश में वैज्ञानिक जुटे हुए हैं। इसी कड़ी में नई कामयाबी हाथ लगी है। पृथ्‍वी जैसे दो ग्रहों वाला एक सौर मंडल हमसे काफी करीब लगभग 33 प्रकाश वर्ष दूर खोज लिया गया है। वैसे यह खोज पिछले साल अक्‍टूबर में ही हो गई थी, लेकिन साइंटिस्‍ट इसे पुख्‍ता कर रहे थे। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (Nasa) के ट्रांजिटिंग एक्सोप्लेनेट सर्वे सैटेलाइट (TESS) ने इसे देखा था। आखिरकार 16 जून को कैलिफोर्निया में अमेरिकन एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी की एक बैठक में इसकी घोषणा की गई। इस खोज के बाद अहम सवाल यह उठता है कि क्‍या इन ग्रहों में जीवन संभव है? क्‍या पृथ्‍वी की तरह एक और दुनिया आने वाले वक्‍त में मुमकिन हो सकती है?  रिपोर्ट के अनुसार, इस सवाल का जवाब फ‍िलहाल तो ‘नहीं' में उत्‍तर देता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि हमारे पड़ोसी सौर मंडल में पृथ्वी के आकार वाले कम से कम दो चट्टानी ग्रह भले मौजूद हों, लेकिन इनमें से किसी के भी जीवन की मेजबानी करने की संभावना नहीं है।  इन दो ग्रहों में से एक का नाम HD 260655b बताया गया है। यह पृथ्वी से लगभग 1.2 गुना बड़ा ...

वैज्ञानिकों ने खोजा ‘दानव ब्‍लैकहोल’, हर सेकंड हमारी पृथ्‍वी जितना बढ़ रहा, आकाशगंगा को भी निगलने की है ताकत

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वैज्ञानिकों को एक ऐसे ब्‍लैक होल के बारे में पता चला है, जिसका आकार हर सेकंड हमारी पृथ्‍वी के आकार जितना बढ़ रहा है। इस जानकारी ने साइंटिस्‍टों को हैरान कर दिया है, क्‍योंकि कोई भी ब्‍लैक होल इतनी तेजी से डिवेलप नहीं होता। पता चला है कि इस विशालकाय ब्लैक होल का द्रव्यमान हमारे सूर्य के द्रव्यमान का 3 अरब गुना है। खास बात यह भी है कि इस आकार के दूसरे ब्‍लैक होल अरबों साल पहले बढ़ना बंद हो गए थे, लेकिन यह अब भी विस्‍तार कर रहा है। बताया जाता है कि यह ब्‍लैक होल हमारी गैलेक्‍सी के हार्ट में मौजूद सैगिटेरियस ए (Sagittarius A) ब्‍लैक होल से भी लगभग 500 गुना बड़ा है। यह पूरी आकाशगंगा को किसी दानव की तरह निगल सकता है।   space.com के अनुसार, रिसर्चर्स का मानना है कि यह ब्लैक होल पिछले 9 अरब साल में सबसे तेजी से बढ़ने वाला ब्लैक होल है। आखिर इसके अब तक विस्‍तार करने की क्‍या वजह हो सकती है। इस बारे में  ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी (ANU) में रिसर्च स्कूल ऑफ एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स के प्रमुख रिसर्चर क्रिस्टोफर ओन्केन ने कहा है कि संभवत: दो बड़ी आकाशगंगाओं के एक-दूसरे से टकराने की वज...

चंद्रमा पर कहां से आया पानी? चीनी वैज्ञानिकों ने खोज निकाला सुराग!

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चंद्रमा पर पानी की मौजूदगी को लेकर दुनियाभर में रिसर्च चल रही है। बीते दिनों हमने आपको जानकारी दी थी कि चीनी साइंटिस्‍ट चंद्रमा से लाए गए सैंपल्‍स का परीक्षण कर रहे हैं। इन सैंपलों का विश्‍लेषण करने के बाद वैज्ञानिक इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि चंद्रमा के एक हिस्‍से में मिट्टी में पानी की मात्रा पहले के मुकाबले कम लगती है। इंटरनेशनल जरनल- नेचर कम्‍युनिकेशंस में पब्लिश एक पेपर में उनकी ओर से कहा गया है कि चांद से लाए गए सैंपल्‍स में मिले पानी का अहम हिस्‍सा चंद्रमा के इंटीरियर से आया होगा।   साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्‍ट की खबर के अनुसार, वैज्ञानिकों की टीम ने Chang'e 5 मिशन के जरिए चंद्रमा से लाए गए सैंपल्‍स को टेस्‍ट किया। ये सैंपल साल 2020 में पृथ्‍वी पर लाए गए थे। इस चीनी लैंडर ने चंद्रमा की सतह को स्‍कैन किया और सैंपल्‍स को इकट्ठा किया था।   वैज्ञानिकों ने पहले जो विश्‍लेषण किया था, उसकी तुलना में यह रिजल्‍ट कम था। बीजिंग में नेशनल एस्ट्रोनॉमिकल ऑब्जर्वेट्री में कार्यरत लियू जियानजुन ने कहा कि Chang'e 5 के इक्विपमेंट ने वहां हाइड्रॉक्सिल की उपस्थिति को मापा, जो पानी का एक कर...

गुरुत्वाकर्षण माइक्रोलेंसिंग तकनीक से वैज्ञानिकों ने खोजा ब्‍लैक होल!

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कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के खगोलविदों की एक टीम ने गुरुत्वाकर्षण माइक्रोलेंसिंग के जरिए एक ब्‍लैक होल की खोज करने का दावा किया है। खगोलविदों के अनुसार, इस अनदेखी और बहुत छोटी चीज का द्रव्यमान सूर्य के द्रव्‍यमान का 1.6 से 4.4 गुना होने का अनुमान है। हालांकि वैज्ञानिकों की टीम का यह भी मानना है कि यह चीज ब्लैक होल के बजाय न्यूट्रॉन स्टार हो सकती है। ऐसा इसलिए क्‍योंकि ब्लैक होल में गिरने के लिए किसी मृत तारे का अवशेष सूर्य के द्रव्‍यमान से भारी होना चाहिए।  न्यूट्रॉन तारे घने और कॉम्‍पैक्‍ट ऑब्‍जेक्‍ट्स होते हैं, लेकिन उनका गुरुत्वाकर्षण आंतरिक न्यूट्रॉन के दबाव से असंतुलित हो जाता है। यह उन्हें ब्लैक होल में और अधिक संकुचित होने से रोक सकता है। खगोलविदों की टीम में शामिल एसोसिएट प्रोफेसर जेसिका लू ने कहा कि यह पहला फ्री-फ्लोटिंग ब्लैक होल या न्यूट्रॉन स्टार था जिसे गुरुत्वाकर्षण माइक्रोलेंसिंग के साथ खोजा गया। लू ने कहा कि वो माइक्रोलेंसिंग का इस्‍तेमाल करके इन छोटी वस्तुओं का पता लगा सकते हैं और उनका वजन कर सकते हैं। एस्ट्रोफिजिकल जर्नल लेटर्स ने प्रकाशन के लिए इस विश्लेषण को स्व...

3,330 किलो की टर्बाइन को समुद्र में डाल रहा जापान, खोज निकाला बिजली बनाने का नया तरीका

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समुद्र में अपार ऊर्जा समाई हुई है, जैसी पृथ्वी पर किसी दूसरी चीज में नहीं है, ऐसा वैज्ञानिक कहते हैं। अब समुद्र की इसी ऊर्जा को जापान ने इकट्ठा कर इस्तेमाल में लाने की सोची है। इसके लिए जापान विशाल 330 टन के टर्बाइन पावर जेनरेटर को सुमद्र की तलहटी में छोड़ने जा रहा है। यह विशाल टर्बाइन जेनरेटर समुद्र की सबसे शक्तिशाली लहरों में टिका रह सकता है और इन लहरों में जो ऊर्जा है, उसे असीमित बिजली सप्लाई में बदल सकता है।  इसे कैरयू (Kairyu) नाम दिया गया है। इसका नाम भी इसी तर्ज पर रखा गया है, जिसका मतलब समुद्री लहर होता है। इसका ढांचा 20 मीटर लम्बा है जो हवाई जहाज के आकार का है। यह दो सिलेंडरों से घिरा हुआ है और दोनों ही समान आकार के हैं। हरेक सिलेंडर में एक पावर जेनरेशन सिस्टम लगा है जो एक 11 मीटर लम्बे टर्बाइन ब्लेड से जुड़ा है।     इसे इशीक्वाजिमा हरिमा हैवी इंडस्ट्रीज ने तैयार किया है जिसे IHI Corporation के नाम से भी जाना जाता है। कंपनी इसके साथ 10 साल से भी अधिक समय से प्रयोग कर रही थी। 2017 में इसने New Energy Industrial Technology Development Organization के साथ पार्टनरशिप की ताकि अ...

एलियंस की खोज में चीन! पृथ्‍वी से बाहर जीवन की तलाश के लिए बनाया मिशन

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साइंस बरसों से इस कोशिश में है कि पृथ्‍वी के नजदीक किसी ऐसे ग्रह का पता लगा सके, जहां जीवन मुमकिन हो। दुनियाभर के वैज्ञानिक कई साल से इन ग्रहों की खोज में जुटे हैं, लेकिन उन्‍हें कोई बड़ी कामयाबी अबतक नहीं मिल पाई है। बहरहाल अब चीन ने इस मिशन को अपने हाथ में लिया है। उसने एक ऐसे मिशन का प्रस्‍ताव रखा है, जो ऐसे ग्रहों की खोज में एक अलग रास्‍ता अपना सकता है। चीनी वैज्ञानिकों को उम्‍मीद है कि यह मिशन पृथ्‍वी से बाहर इन ग्रहों को लेकर पुख्‍ता नजर‍िया पेश कर सकता है। इस मिशन का नाम है क्लोजबाय हैबिटेबल एक्सोप्लैनेट सर्वे (CHES)। इस मिशन के तहत चीन हमारी पृथ्‍वी के आसपास स्थित तारों पर मौजूद ग्रहों की परिक्रमा के असर को जानेगा। इन ग्रहों को एक्‍सोप्‍लैनेट कहा जाता है। ऐसे ग्रह जो सूर्य के अलावा अन्य तारों की परिक्रमा करते हैं, वो एक्सोप्लैनेट कहलाते हैं। मिशन के जरिए यह समझने की कोशिश की जाएगी कि क्‍या फलां ग्रह में जीवन को बनाए रखने की क्षमता है। अगर ऐसा होता है, तो यह विज्ञान के लिए एक बड़ी उपलब्धि हो सकती है। बताया जाता है कि इस मिशन को एक स्‍पेसक्राफ्ट के जरिए पूरा किया जाएगा।  रिपो...

Nasa ने खोज निकाला ‘नर्क’! जल्‍द नजर आएगी जलती दुनिया की पहली झलक

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अगले कुछ हफ्तों में दुनिया दो ऐसे ग्रहों को देख सकती है, जो कहने के लिए तो ‘सुपर अर्थ' हैं, पर किसी ‘नर्क' से कम नहीं हैं। अंतरिक्ष में तैनात दुनिया का सबसे बड़ा टेलीस्‍कोप- जेम्‍स वेब टेलीस्‍कोप इन ग्रहों को सामने ला सकता है। ये दोनों ‘सुपर अर्थ' हमसे 50 प्रकाश वर्ष दूर हैं। इनमें से एक ग्रह का नाम है ‘55 कैनरी ई' (55 Cancri e)। यह ग्रह अपने सूर्य के इतने करीब से चक्‍कर लगाता है कि इसकी सतह बेहद गर्म है। इतनी गर्म की आप इसे आग का गोला भी समझ सकते हैं।   रिपोर्टों के अनुसार, ‘55 कैनरी ई' अपने तारे से 15 लाख मील से भी कम दूरी पर स्थित है। नासा के मुताबिक, यह दूरी हमारे सूर्य और बुध ग्रह के बीच की दूरी का भी 1/25वां भाग है। इससे ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह ग्रह कितना गर्म होगा। माना जाता है कि यह ग्रह गर्म लावा के सागरों से ढका हुआ है। इसकी सतह का तापमान बेहिसाब हो सकता है, जो बुध ग्रह के तापमान से भी कई गुना ज्‍यादा हो सकता है।  सोचिए अगर पृथ्‍वी अपने सूर्य के इतने करीब होती, जिसमें एक साल का समय कुछ घंटों में ही पूरा हो जाता। इतनी गर्म होती कि महासागर उबल र...

अंतरिक्ष के ‘कब्रिस्‍तान’ में वैज्ञानिकों ने खोजा रेडियो उत्‍सर्जन पैदा करने वाला न्यूट्रॉन तारा

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हमारी आकाशगंगा में असामान्य रेडियो उत्‍सर्जन पैदा करने वाले एक यूनीक न्यूट्रॉन की खोज ने खगोलविदों को हैरान कर दिया है। डेटा के विश्लेषण से रिसर्चर्स को पता चला है कि PSR J0941-4046 एक असामान्य न्यूट्रॉन तारा है, जो अन्य पल्सर की तुलना में बेहद धीमी गति से घूमता है। यह इसलिए भी खास है, क्योंकि यह न्यूट्रॉन स्टार ‘कब्रिस्तान' में रहता है। यह अंतरिक्ष में उस जगह को कहा जाता है जहां खगोलविद किसी भी रेडियो उत्सर्जन का पता लगाने की उम्मीद नहीं करते हैं। इस न्यूट्रॉन स्टार ने एक अजीब दिखने वाली फ्लैश उत्सर्जित की जो लगभग 300 मिलीसेकंड तक चली। यह फ्लैश एक न्यूट्रॉन स्टार जैसा दिखता था। रिसर्चर्स का दावा है कि यह पहले देखी गईं चीजों से एकदम अलग था। रिसर्चर्स ने उस एरिया का सर्वे करने के बाद कई और फ्लैशों का पता लगाया, लेकिन यह न्‍यूट्रॉन एकदम अलग निकला। रिसर्चर्स को लगता है कि उनकी खोज स्‍टीलर ऑब्‍जेक्‍ट्स के एक नए वर्ग के लिए रास्ता खोल सकती है।  सिडनी यूनिवर्सिटी की लेक्‍चरर मनीषा कालेब और उनके सहयोगियों ने साउथ अफ्रीका में मीरकैट रेडियो टेलीस्कोप का इस्‍तेमाल करते हुए मिल्की वे के ‘...

क्‍या सचमुच एलियंस ने हमें भेजा था 'Wow! सिग्‍नल? वैज्ञानिकों ने खोज निकाली वह जगह

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एलियंस हमारी दुनिया के लिए हमेशा से रहस्‍य और उत्‍सुकता बने हुए हैं। ऐसे दावों की कमी नहीं है, जिनमें एलियंस के होने की बात कही जाती है। रिसर्चर्स इन दावों की पड़ताल में जुटे हुए हैं। इन्‍हीं में से एक है वो ब्रॉडकास्‍ट, जिसे ‘एलियन ब्रॉडकास्‍ट' कहा जाता है। यह बात साल 1977 की है। अमेरिका में एक रेडियो टेलीस्कोप को नैरोबैंड रेडियो सिग्नल मिला। इसे वाव (Wow) सिग्‍नल के रूप में जाना जाता है। इस सिग्‍नल ने वैज्ञानिकों को हैरान कर दिया था क्‍योंकि साइंटिस्‍ट इसकी उत्पत्ति का पता नहीं लगा पाए थे। कहा जा रहा है कि अब वैज्ञानिकों को इसका जवाब मिल गया है।  आधी सदी पहले आए इस सिग्‍नल के सोर्स को लेकर वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया है कि यह 1800 प्रकाश-वर्ष दूर सैजिटेरीअस तारामंडल में स्थित एक सूर्य जैसे तारे से आया होगा। खगोलशास्त्री अल्बर्टो कैबलेरो ने लाइव साइंस को बताया कि "वाव! सिग्नल को सबसे बेस्‍ट SETI कैंडिडेट रेडियो सिग्नल माना जाता है, जिसे हमारे टेलीस्‍कोपों ने पिक किया है। नासा के अनुसार, SETI या दूसरे ग्रहों की खोज वह क्षेत्र है, जिसके तहत 20वीं सदी के मध्य से ऐसे संदेशों ...

NASA ने हबल स्पेस टेलीस्कोप के पुराने डेटाबेस से खोजे 1,031 अज्ञात एस्ट्रॉयड का ग्रुप

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पिछले 20 वर्षों में हबल स्पेस टेलीस्कोप द्वारा इकट्ठा किए गए डेटा में 1701 नए एस्ट्रॉयड ट्रेल्स का पता लगाने के लिए एस्ट्रोनॉमर्स ने मानव और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के एक जटिल कॉम्बिनेशन का इस्तेमाल किया है। रिसर्चर्स का मानना ​​​​है कि खोजे गए इन नए एस्ट्रॉयड से सोलर सिस्टम की शुरुआत के बारे में अहम जानकारियां दे सकते हैं, जब ग्रहों का निर्माण हुआ था। हबल टेलीस्कोप NASA का सबसे मूल्यवान टेलीस्कोप है, जिसने खगोल विज्ञान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। दुनिया के इस सबसे बड़े स्पेस टेलीस्कोप को 1990 में लॉन्च किया गया था। UK के डेली न्यूजपेपर Daily Express की रिपोर्ट के अनुसार, जून 2019 में, एस्ट्रोनॉमर्स के एक अंतरराष्ट्रीय ग्रुप ने हबल स्पेस टेलीस्कोप के आर्काइव डेटा की जांच की और इसमें छिपे हजारों एस्ट्रॉयड की पहचान करने के लिए Hubble Asteroid Hunter नाम का एक सिटिजन साइंस प्रोजेक्ट लॉन्च किया। इस प्रोजेक्ट का नेतृत्व करने वाले मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट फॉर एक्स्ट्राटेरेस्ट्रियल फिजिक्स के सैंडोर क्रुक (Sandor Kruk) ने कहा "एक खगोलविद का कचरा दूसरे खगोलविद का खजाना हो सकता है।...

ब्‍लैक होल भी होते हैं कुपोषण का शिकार, Nasa के हबल टेलीस्‍कोप ने खोज निकाला

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अपने 30 साल से ज्‍यादा के सफर में अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (Nasa) के हबल स्पेस टेलीस्कोप ने ब्रह्मांड की कुछ दिलचस्प इमेजेस को कैप्चर किया है। इससे खगोलविदों को वहां होने वाली रहस्यमयी घटनाओं को समझने में मदद मिली है। इन इमेजेस में एक ‘NGC 3147' नाम की स्‍पाइरल आकाशगंगा की तस्‍वीर भी है। यह आकाशगंगा लगभग 130 मिलियन प्रकाश-वर्ष दूर ड्रेको तारामंडल में स्थित है, जिसे ‘ड्रैगन' भी कहा जाता है। इमेज दिखाती है कि आकाशगंगा की घुमावदार भुजाएं अंतरिक्ष में फैली एक सर्पाकार सीढ़ी की तरह दिखाई देती हैं। हकीकत में इनमें गुलाबी रंग की निहारिकाएं (nebulae), नीले तारे मौजूद हैं।  इस इमेज को पहली बार जुलाई 2019 में रिलीज किया गया था। आकाशगंगा के कोर में एक ब्लैक होल है, लेकिन वह बहुत बेहतर नहीं है या यूं कहें कि कुपोषित है और तारों, गैस व धूल की एक पतली कॉम्पैक्ट डिस्क से घिरा है। हालांकि इस ब्लैक होल का गुरुत्वाकर्षण इतना मजबूत है कि जो कुछ भी उसके करीब आता है वह डिस्क में बह जाता है।   नासा की हबल टीम के अनुसार, इस ‘मॉन्‍स्‍टर' ब्लैक होल का वजन हमारे सूर्य के द्रव्यमान का लगभग 25...

वैज्ञानिकों ने खोजी नई तरकीब, ब्‍लैक होल की जोड़ी को समझना होगा और आसान

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तीन साल पहले एक ब्‍लैक होल की तस्‍वीर ने दुनिया को हैरान कर दिया था। इवेंट होराइजन टेलीस्कोप ने मेसियर 87 आकाशगंगा के केंद्र में स्थित उस ब्‍लैक होल की इमेज को कैप्‍चर किया था। इस तस्‍वीर में ब्‍लैक होल का वह जोड़ा किसी जलती हुई रिंग की तरह दिखाई दे रहा था, जिसके बीच में गहरा काला गड्ढा था। अब कोलंबिया यूनिवर्सिटी के दो रिसर्चर्स ने ऐसे ब्‍लैक होल के बारे में और समझने के लिए एक तरकीब का आविष्कार किया है। इसकी मदद से आने वाले समय में खगोलविद मेसियर 87 जैसे छोटे ब्लैक होल का अध्ययन करने में सक्षम हो सकते हैं। इस अप्रोच के सिर्फ दो क्राइटेरिया हैं। इस आविष्‍कार को शुरू करने के लिए विशायलकाय ब्लैक होल की एक जोड़ी होनी चाहिए। यह जोड़ी एक दूसरे के साइड में होनी चाहिए। उस पॉइंट पर जब एक ब्लैक होल दूसरे के सामने से गुजरता है, तब व्यक्ति को प्रकाश की तेज चमक देखने में काबिल होना चाहिए। यह स्‍टडी फिजिकल रिव्यू डी जर्नल में प्रकाशित हुई है। कोलंबिया में पोस्ट-डॉक्टरेट फेलो और कम्प्यूटेशनल एस्ट्रोफिजिक्स के फ्लैटिरॉन इंस्टीट्यूट के सेंटर और इस स्‍टडी के पहले लेखक ने कहा कि M87 ब्लैक होल की हा...

असम में मेगालिथिक स्टोन जार (Megalithic Stone Jar) की खोज की गई

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First Published: April 14, 2022 | Last Updated:April 14, 2022 असम के दीमा हसाओ जिले में कई महापाषाण काल ​​के पत्थर के घड़े (megalithic stone jars) मिले हैं। इस खोज ने दक्षिण पूर्व एशिया और भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र के बीच दूसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व के संभावित लिंक को उजागर किया है। मुख्य बिंदु  ‘An archaeological survey of the Assam stone jar sites’ पेपर में तीन अलग-अलग आकार के जार का दस्तावेजीकरण किया गया है। नुचुबंग्लो (Nuchubunglo) नामक एक साइट में, 546 जार की खोज की गई है। Asian Archaeology में प्रकाशित इस अध्ययन ने लाओस और असम और इंडोनेशिया के बीच इस सांस्कृतिक संबंध को समझने के लिए और अधिक शोध की मांग की है। इंडोनेशिया और लाओस ही ऐसे दो अन्य स्थल हैं जहां से इस तरह के जार खोजे गए हैं। मेगालिथिक स्टोन जार (Megalithic Stone Jar) असम में खोजे गए जार को पहली बार वर्ष 1929 में जॉन हेनरी हटन और जेम्स फिलिप मिल्स, ब्रिटिश सिविल सेवकों द्वारा देखा गया था।कोबाक, दीमा हसाओ: डेरेबोर (अब होजई डोबोंगलिंग), मोलोंगपा (अब मेलांगपुरम), कार्तोंग, बोलासन (अब न...

इन ग्रहों में पत्थर भी पिघल जाते हैं, NASA ने खोजे 3 हजार डिग्री फारेनहाइट वाले एक्सोप्लैनेट

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NASA के वैज्ञानिकों ने ऐसे ग्रह खोजे हैं, जहां तापमान 3,000 डिग्री फारेनहाइट (लगभग 1650 डिग्री सेल्सियस) से अधिक हो जाता है, जो टाइटेनियम को भी पिघलाने के लिए काफी है। अल्ट्रा-हॉट एक्सोप्लैनेट के अपने अध्ययन के दौरान, नासा हबल टेलीस्कोप के साथ काम करने वाले खगोलविदों (एस्ट्रोनॉमर्स) की टीमों ने 1300 लाइट ईयर दूर एक एक्सोप्लैनेट WASP-178b की जानकारी दी है। NASA के हबल स्पेस टेलीस्कोप का इस्तेमाल करते हुए, एस्ट्रोनॉमर्स ने पाया कि WASP-178b का एक हिस्सा हमेशा इसके जलते हुए तारे के सामने रहता है। दिन के समय यह देखा गया है कि एक्सोप्लैनेट पर वातावरण सिलिकॉन मोनोऑक्साइड गैस से घिरा हुआ रहता है। वहीं, अंधेरे वाले हिस्से की  तरफ सिलिकॉन मोनोऑक्साइड आसमान से नीचे गिरने वाली चट्टानों में बदलने के लिए पर्याप्त ठंडा होता है। लेकिन सुबह होने के समय और शाम के समय, ये वही चट्टानें गर्म तापमान के कारण भाप हो जाती हैं। यह अध्ययन नेचर पत्रिका (Nature journal) में पब्लिश हुआ था। बाल्टीमोर, मैरीलैंड में जॉन्स हॉपकिन्स विश्वविद्यालय से दो अध्ययनों पर सह-लेखक डेविड सिंग (David Sing) ने कहा (अनुवादित) ...

वैज्ञानिकों ने 13.5 अरब प्रकाश वर्ष दूर खोजा ऑब्‍जेक्‍ट, हो सकती है सबसे दूर स्थित आकाशगंगा

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रिसर्चर्स ने एक ऐसे ऑब्‍जेक्‍ट को ढूंढा है, जो आजतक खोजे गए ऑब्‍जेक्‍ट्स में सबसे दूर है। HD1 नाम का यह ऑब्‍जेक्‍ट एक गैलेक्‍सी (आकाशगंगा) हो सकती है, जिसके पृथ्‍वी से 13.5 अरब प्रकाश वर्ष दूर होने का अनुमान है। यह अबतक खोजी गई सबसे दूर स्थित आकाशगंगा GN-z11 से भी 100 मिलियन प्रकाश वर्ष दूर है। HD1 की खूबी है कि यह अल्‍ट्रावॉयलेट लाइट में तेज चमकता है। यह खुद को ऐसे पेश करता है, मानो कि यह एक आकाशगंगा हो। इसी वजह से वैज्ञानिक अनुमान लगा रहे हैं कि यह एक स्टारबर्स्ट आकाशगंगा हो सकती है या एक ऐसी गैलेक्‍सी जो तेजी से स्‍टार्स पैदा करती है। पता चला है कि आकाशगंगा बनने का यह कैंडिडेट हर साल 100 से ज्‍यादा तारों का निर्माण कर रहा है। यह सामान्य स्टारबर्स्ट आकाशगंगाओं से 10 गुना ज्‍यादा है।  यह खोज हार्वर्ड और स्मिथसोनियन के सेंटर फॉर एस्‍ट्रोफ‍िजिक्‍स के एक्‍सपर्ट समेत खगोलविदों की एक इंटरनेशनल टीम के द्वारा की गई।  रिसर्चर्स की टीम के दो सुझाव हैं। पहला- HD1 नाम का यह ऑब्‍जेक्‍ट बहुत तेजी से तारे बना सकता है और यह पॉपुलेशन III स्‍टार्स का घर हो सकता है, जो ब्रह्मांड के पहले सितारे हैं ...

Nasa के हबल टेलीस्‍कोप ने खोजा अब तक का सबसे दूर और पुराना तारा

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खगोलविदों ने ब्रह्मांड में अब तक देखे गए सबसे दूर और पुराने तारे की खोज की है। यह तारा 12.9 अरब साल पहले भी चमकता था। इस तारे की रोशनी ने पृथ्वी तक पहुंचने के लिए 12.9 अरब प्रकाश-वर्ष की यात्रा की होगी। खगोलविदों का कहना है कि नया खोजा गया तारा वैसे ही दिखाई दिया, जैसे वह तब दिखाई दिया था जब ब्रह्मांड अपनी वर्तमान आयु का सिर्फ 7 प्रतिशत था। इसे हबल स्पेस टेलीस्कोप ने देखा है और अपने इंस्टाग्राम हैंडल पर इसकी इमेज शेयर की है। इसके कैप्‍शन के मुताबिक हबल ने अब तक देखे गए सबसे दूर व्यक्तिगत तारे को देखकर रिकॉर्ड तोड़ दिया है। इस तारे को एरेन्डेल (Earendel) नाम दिया गया है। खगोलविदों का कहना है कि एरेन्डेल ने हमारे ब्रह्मांड के पहले अरब वर्षों में जगमगाना शुरू किया। एरेन्डेल का द्रव्‍यमान हमारे सूर्य के द्रव्‍यमान का 50 गुना होने का अनुमान है। चमकने के मामले में भी यह हमारे सूर्य से लाखों गुना तेज है।    जर्नल नेचर में प्रकाशित पेपर के लेखक ब्रायन वेल्च ने कहा है कि पहले तो उन्‍हें इस खोज पर विश्‍वास ही नहीं हुआ, क्‍योंकि यह तारा रेडशिफ्ट स्टार से बहुत दूर था। गौरतलब है कि रेडशिफ्ट और...

अहम खोज : वैज्ञानिकों को इस ग्रह पर मिले बर्फ के ज्वालामुखी

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रहस्‍यों से भरा ब्रह्मांड वैज्ञानिकों को हर रोज कुछ ना कुछ जानने के लिए प्रेरित करता है। अब प्‍लूटो ग्रह को लेकर नासा ने नई जानकारी है। नासा के न्यू होराइजन्स अंतरिक्ष यान से मिला डेटा बताता है कि यह ठंडा ग्रह पहले से ज्‍यादा गतिशील है। यहां गुंबद के आकार वाले बर्फ के ज्वालामुखी हैं, जो अभी भी एक्टिव हो सकते हैं। मंगलवार को वैज्ञानिकों ने कहा कि 10 से ज्‍यादा क्रायोवोल्कैनो एक किलोमीटर से लेकर 7 किलोमीटर के एरिया में मौजूद हैं। उन्होंने कहा कि जैसे पृथ्वी के ज्वालामुखियों से गैसें और पिघली हुई चट्टानों का लावा निकलता है, उसी तरह से ये क्रायोवोल्कैनो बड़ी मात्रा में बर्फ निकालते हैं। इसमें जमे हुए पानी के साथ-साथ कुछ और भी हो सकता है। नेचर जर्नल में प्रकाशित अध्ययन के प्रमुख लेखक और कोलोराडो में साउथवेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट के प्‍लेनेटरी साइंटिस्‍ट केल्सी सिंगर ने कहा, इन फीचर्स को खोजने से यह संकेत मिलता है कि प्लूटो अधिक सक्रिय या भूगर्भीय रूप से जीवित है। यहां बर्फ होने की संभावना आश्चर्यजनक है। गौरतलब है कि प्‍लूटो ग्रह का आकार पृथ्वी के चंद्रमा से भी छोटा है। इसका व्यास लगभग 1...

स्पेन में दो दशक पहले खोजे गए जीवाश्म से हुई नए डायनासोर की पहचान!

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स्पेन के कास्टेलॉन प्रांत के पोर्टेल इलाके में दो दशक पहले खोजे गए जीवाश्म के जबड़े की हड्डी के विश्लेषण के बाद वैज्ञानिकों ने एक नए डायनासोर जीनस (genus) की पहचान की है। वैज्ञानिकों का कहना है कि स्टायरकोस्टर्नन हैड्रोसॉरिड डायनासोर (styracosternan hadrosaurid dinosaur) छह से आठ मीटर लंबा, एक शाकाहारी और आधुनिक चीन और नाइजर में पाई जाने वाली प्रजातियों से निकटता से संबंधित था। अध्ययन का शीर्षक "ए न्यू स्टायरकोस्टर्नन हैड्रोसौरॉइड (डायनासोरिया: ऑर्निथिशिया) पोर्टेल, स्पेन के अर्ली क्रेटेशियस से था।" जीवाश्म जो रिसर्च का हिस्सा था, मूल रूप से मास डी क्यूरोल्स-द्वितीय (MQ-II) साइट पर खोजा गया था। प्रजातियों में कई पंजे, बड़े नथुने और एक विशाल पूंछ थी। पेपर का एक संक्षेप कहता है, "ऑटोपोमॉर्फीज़ में शामिल हैं: कोरोनॉइड प्रक्रिया के आधार पर सीधे उदर मार्जिन के साथ एक उभार की अनुपस्थिति और ग्यारहवें-बारहवें दांत की स्थिति के नीचे जबड़े के योजक फोसा की औसत दर्जे की सतह पर एक गहरी अंडाकार गुहा की उपस्थिति।"  PLOS One नामक पत्रिका में प्रकाशित स्टडी के अनुसार, माना जाता ...

चंद्रयान 2 की बड़ी कामयाबी : चंद्रमा के बाहरी वातावरण में ‘आर्गन-40’ गैस खोज निकाली

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चंद्रमा की सतह और उसके वातावरण में होने वाली जटिल प्रक्रियाओं को जानने की होड़ तेज होती जा रही है। कई देश चंद्रमा के बारे में ज्‍यादा से ज्‍यादा जानने की कोशिश कर रहे हैं। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा तो चंद्रमा के लिए अपने दूसरे मानव मिशन को आगे बढ़ा रही है। इस बीच, भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी ‘इसरो' (ISRO) ने एक दिलचस्प खोज का दावा किया है। इसरो ने कहा है कि उसके चंद्रयान -2 ऑर्बिटर को चंद्रमा के ऊपरी वायुमंडल में एक महत्वपूर्ण गैस मिली है। इसरो ने बताया है कि चंद्रयान के ‘एटमॉस्‍फ‍िएरिक कम्‍पोजिशन एक्‍सप्‍लोरर-2' (CHACE-2) उपकरण ने चंद्र एक्सोस्फीयर (बाहरी मंडल) में ‘आर्गन-40' गैस का पता लगाया है। यह चंद्रमा के वातावरण का सबसे बाहरी क्षेत्र है, जहां परमाणु और अणु शायद ही कभी एक-दूसरे से टकराते हैं। इसरो को उम्मीद है कि उसका ऑब्‍जर्वेशन चंद्रमा के आसपास और बाहरी प्रजातियों को समझने में मदद करेगा।   चंद्रमा की सतह के नीचे रेडियोजेनिक गतिविधियों को समझने में भी यह ऑब्‍जर्वेशन मदद कर सकता है।  इसरो के मुताबिक, यह खोज इसलिए महत्‍वपूर्ण है, क्‍योंकि ‘आर्गन-40' (Ar-40) एक उत...