एलियंस की खोज में चीन! पृथ्‍वी से बाहर जीवन की तलाश के लिए बनाया मिशन

साइंस बरसों से इस कोशिश में है कि पृथ्‍वी के नजदीक किसी ऐसे ग्रह का पता लगा सके, जहां जीवन मुमकिन हो। दुनियाभर के वैज्ञानिक कई साल से इन ग्रहों की खोज में जुटे हैं, लेकिन उन्‍हें कोई बड़ी कामयाबी अबतक नहीं मिल पाई है। बहरहाल अब चीन ने इस मिशन को अपने हाथ में लिया है। उसने एक ऐसे मिशन का प्रस्‍ताव रखा है, जो ऐसे ग्रहों की खोज में एक अलग रास्‍ता अपना सकता है। चीनी वैज्ञानिकों को उम्‍मीद है कि यह मिशन पृथ्‍वी से बाहर इन ग्रहों को लेकर पुख्‍ता नजर‍िया पेश कर सकता है।

इस मिशन का नाम है क्लोजबाय हैबिटेबल एक्सोप्लैनेट सर्वे (CHES)। इस मिशन के तहत चीन हमारी पृथ्‍वी के आसपास स्थित तारों पर मौजूद ग्रहों की परिक्रमा के असर को जानेगा। इन ग्रहों को एक्‍सोप्‍लैनेट कहा जाता है। ऐसे ग्रह जो सूर्य के अलावा अन्य तारों की परिक्रमा करते हैं, वो एक्सोप्लैनेट कहलाते हैं। मिशन के जरिए यह समझने की कोशिश की जाएगी कि क्‍या फलां ग्रह में जीवन को बनाए रखने की क्षमता है। अगर ऐसा होता है, तो यह विज्ञान के लिए एक बड़ी उपलब्धि हो सकती है। बताया जाता है कि इस मिशन को एक स्‍पेसक्राफ्ट के जरिए पूरा किया जाएगा। 

रिपोर्टों के अनुसार, मिशन में माइक्रो-आर्ससेकंड रिलेटिव एस्ट्रोमेट्री नाम की मेथड इस्‍तेमाल में लाई जा सकती है। इसमें एक टेलीस्‍कोप की मदद से एक्‍सोप्‍लैनेट के द्रव्‍यमान को कैलकुलेट किया जाएगा। 

आज तक 5,000 से अधिक एक्सोप्लैनेट की खोज की जा चुकी है। बताया जाता है कि इनमें से 50 ग्रह ऐसे हो सकते हैं, जो रहने के लिए पृथ्‍वी जैसे हैं। हालांकि उनमें से ज्‍यादातर ग्रह सैकड़ों प्रकाशवर्ष दूर हैं। 

इस मिशन के बारे में चीनी अकैडमी साइंस में पर्पल माउंटेन ऑब्जर्वेटरी के एक रिसर्च प्रोफेसर और मिशन के प्र‍िंसिपल इन्‍वेस्टिगेटर जी जियानघुई ने कहा कि पृथ्‍वी के आसपास मौजूद तारों के चक्‍कर लगाने वाले ग्रहों में जीवन की खोज करना मानवता के लिए एक बड़ी सफलता होगी। इससे मनुष्यों को उन ग्रहों पर जाने और भविष्य में हमारे रहने की जगह का विस्तार करने में मदद मिलेगी। 

इस मिशन पर अभी काम चल रहा है। पुख्‍ता तौर पर यह नहीं कहा जा सकता है कि मिशन कबतक शुरू हो पाएगा। सवाल यह भी है कि अगर ऐसा ग्रह खोज भी लिया जाता है, तो कहीं वहां कोई और सभ्‍यता का निवास तो नहीं होगा। खासकर कि एलियंस का, जिनके बारे में भी वैज्ञानिक वर्षों से रिसर्च कर रहे हैं। 
 

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