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"क्रिमिनल मामलों में TV चैनलों पर होने वाली बहस आपराधिक न्याय प्रशासन में हस्तक्षेप के समान": SC

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ऐसी कोई भी बहस जो अदालतों के क्षेत्र में हैं, उन्हें आपराधिक न्याय प्रशासन में हस्तक्षेप माना जाएगा. नई दिल्ली: आपराधिक मामलों में टीवी पर होने वाली बहस पर सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी आई है. जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आपराधिक मामलों में टीवी चैनलों में होने वाली बहस आपराधिक न्याय प्रशासन में सीधे हस्तक्षेप के समान है. ये मामला आपराधिक अदालतों के अधिकार क्षेत्र का हैं. जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की पीठ का ये फैसला है. अपराध से संबंधित सभी मामले और क्या कोई विशेष बात सबूत का एक निर्णायक हिस्सा है ? इसे एक टीवी चैनल के माध्यम से नहीं, बल्कि एक कोर्ट द्वारा निपटाया जाना चाहिए. अदालत चार आरोपियों द्वारा दायर आपराधिक अपीलों पर विचार कर रही थी, जिन्हें डकैती के मामले के तहत दोषी ठहराया गया था.  यह भी पढ़ें ये भी पढ़ें- 14 टीम, 9 बुलडोजर और 1500 पुलिसकर्मी : जहांगीरपुरी में कुछ ऐसे चला बुलडोजर ये एक पुलिस अधिकारी को स्वीकारोक्ति की प्रकृति में एक बयान के बारे में है. इसे जांच एजेंसी द्वारा रिकॉर्ड की गई डीवीडी पर उक्त बयानों को एक चैनल द्वारा कार्यक्रम में चलाया और प्...

'मौलिक अधिकारों का उल्लंघन' : दंगों के मामलों में आरोपियों की प्रॉपर्टी पर बुल्डोजर चलाने का मामला SC में

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याचिका में केन्द्र सरकार के साथ उतर प्रदेश, मध्य प्रदेश और गुजरात राज्यों को पक्षकार बनाया गया है. नई दिल्ली: दंगों जैसे मामलों के आरोपियों की संपत्ति पर बुलडोजर चलाने का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा गया है. जमीअत उलेमा-ए-हिन्द ने निजी सम्पत्तियों पर बुलडोज़र चलाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है और इसे मौलिक अधिकारों का उल्लंघन बताया है. उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और गुजरात में आरोपियों के घरों व दुकानों पर बुलडोज़र चलाने के खिलाफ दायर याचिका में कहा गया है कि बिना जांच, ट्रायल और अदालती आदेश के संपत्ति पर बुलडोजर चलाना अवैध है. याचिका में कोर्ट से अनुरोध किया गया कि राज्यों को आदेश दिया जाए कि अदालत की अनुमति के बिना किसी आरोपी के घर या दुकान को गिराया नहीं जाएगा. किसी भी आपराधिक कार्यवाही में किसी भी आरोपी के खिलाफ कोई स्थायी प्रारंभिक कार्रवाई नहीं की जाए. यह भी पढ़ें ये भी पढ़ें- Jahangirpuri Violence: घायल सब-इंस्पेक्टर से मिलने उनके घर पहुंचे दिल्ली पुलिस कमिश्नर राकेश अस्थाना याचिका में केन्द्र सरकार के साथ उतर प्रदेश, मध्य प्रदेश और गुजरात राज्यों को पक्षकार बनाय...

छावला रेप और हत्‍याकांड केस : तीन दोषियों की मौत की सजा पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला रखा सुरक्षित

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सुप्रीम कोर्ट तय करेगा कि तीनों दोषियों की मौत की सजा बरकरार रखी जाए या नहीं नई दिल्‍ली : वर्ष 2012 के दिल्ली के छावला रेप और हत्याकांड मामले में सुप्रीम कोर्ट ने तीन दोषियों की मौत की सजा पर फैसला सुरक्षित रख लिया है. सुप्रीम कोर्ट तय करेगा कि तीनों की मौत की सजा बरकरार रखी जाए या नहीं. इस केस को 'दूसरा निर्भया केस' कहा जाता है. जस्टिस उदय उमेश ललित, जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की बेंच ने सभी पक्षों की सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रखा. दिल्ली पुलिस ने मौत की सजा कम करने की अर्जी का विरोध किया है. पुलिस की ओर से ASG ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि ये अपराध सिर्फ पीड़िता के साथ नहीं, बल्कि पूरे समाज के साथ हुआ है. दोषियों को कोई रियायत नहीं दी जा सकती क्योंकि उन्होंने ऐसा वहशियाना अपराध किया है. ये ऐसा अपराध है जिसके कारण मां-पिता बेटियों को सांझ ढले घर के बाहर नहीं रहने देते. दोषियों ने न केवल युवती से सामूहिक बलात्कार किया बल्कि उसके मृत शरीर का अपमान भी किया.  यह भी पढ़ें वहीं, तीनों दोषियों की ओर से अदालत में दोषियों की उम्र, पारिवारिक पृष्ठभूमि और पूर्व इतिह...

...जब कोर्ट में पीड़िता के पिता से जज ने कहा - 'हाथ ना जोड़े, बैठ जाएं'

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सुप्रीम कोर्ट की एक तस्वीर नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली के छावला में 2012 में हुए गैंगरेप और हत्या के मामले की सुनवाई के दौरान उस समय माहौल भावुक हो गया, जब पीड़िता के पिता कोर्ट रूम में अपना पक्ष रखने के लिए हाथ जोड़ कर खड़े हो गए. जस्टिस  उदय उमेश ललित, जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की बेंच मामले की सुनवाई कर रही थी. जिसने सभी पक्षों की सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया है.  यह भी पढ़ें दरअसल, पहले दोषियों के वकीलों ने अपना पक्ष रखा और मौत की सजा को कम करने की गुहार लगाई. फिर दिल्ली पुलिस की ओर से ASG ऐश्वर्या भाटी ने इसका विरोध किया. दोनों पक्षों के बाद पीड़ित परिवार की वकील ने पीठ से परिवार की दलीलें भी सुनने का आग्रह किया और बताया कि पीड़िता के पिता अदालत में मौजूद हैं. उसी समय पीड़िता के पिता हाथ जोड़कर खड़े हो गए और बेंच ने उनको देखा. बेंच की अगुवाई कर रहे जस्टिस ललित ने कहा कि वो पिता को हाथ जोड़े खड़े हुए देख रहे हैं लेकिन उनको कहा जाए की वो बैठ जाएं. छावला रेप और हत्‍याकांड केस : तीन दोषियों की मौत की सजा पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला रखा सुरक्षित ...

तरक्‍की में आरक्षण की नीति रद्द करने का असर 4.5 लाख कर्मचारियों पर पड़ेगा : सुप्रीम कोर्ट में केंद्र

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प्रतीकात्‍मक फोटो नई दिल्‍ली : पदोन्नति में आरक्षण के मामले में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रखा है. केंद्र ने मामले में दलील देते हुए कहा है कि SC के फैसले से अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों को सरकारी सेवा के दौरान तरक्की में आरक्षण की नीति रद्द करने का असर सीधे-सीधे 4.5 लाख कर्मचारियों पर पड़ेगा, इससे इन कर्मियों में असंतोष बढ़ेगा.केंद्र सरकार ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट के सामने कहा कि तरक्की यानी प्रमोशन में आरक्षण का असर आरक्षित वर्ग में आने वाले साढ़े चार लाख कर्मचारियों अधिकारियों पर पड़ेगा.ये असर 2007 से 2020 के दौरान सरकारी सेवाओं में तरक्की पाने वालों पर पड़ रहा है. 2017 में दिल्ली हाईकोर्ट से रद्द हुई तरक्की में आरक्षण की अपनी नीति की हिमायत करते हुए केंद्र सरकार की दलील है कि उस नीति से किसी पर उल्टा या नकारात्मक असर नहीं पड़ रहा था क्योंकि प्रमोशन आरक्षण वर्ग के उन्हीं अधिकारियों-कर्मचारियों को दिया जा रहा था जिनका प्रदर्शन बेहतरीन रहा और वो निर्धारित अर्हता पूरी करते थे.  यह भी पढ़ें Source link https://myrevolution.in/politics/%e0%a4%a4%e0%a4%b0...

‘नींबूज़’ नींबू पानी है या फलों का रस, सुप्रीम कोर्ट करेगा परीक्षण

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सुप्रीम कोर्ट ने मामले में आराधना फूड कम्पनी को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है नई दिल्‍ली : सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) ने इस बात पर विचार करने की सहमति जताई है कि 'नींबूज़' पर उत्पाद शुल्क तय करने के लिए इसे 'नींबू पानी' के तौर पर वर्गीकृत किया जाए या 'फलों के पल्प या रस से बने ड्रिंक' के तहत. आराधना फूड्स नामक कंपनी की अपील थी कि इसे इसके वर्तमान वर्गीकरण के बजाय 'नींबू पानी' कहा जाए. गुड्स एंड सर्विसेस टैक्‍स (GST) को लेकर सामने आए इस विवाद पर जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बी वी नागरत्ना की बेंच अब सुनवाई करेगी. सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने हैदराबाद सेंट्रल एक्साइज आयुक्त की याचिका पर आराधना फूड कम्पनी  को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है, 27 अप्रैल तक ये जवाब मांगा गया है. यह भी पढ़ें Source link https://myrevolution.in/politics/%e0%a4%a8%e0%a5%80%e0%a4%82%e0%a4%ac%e0%a5%82%e0%a4%9c%e0%a4%bc-%e0%a4%a8%e0%a5%80%e0%a4%82%e0%a4%ac%e0%a5%82-%e0%a4%aa%e0%a4%be%e0%a4%a8%e0%a5%80-%e0%a4%b9%e0%a5%88-%e0%a4%af/?feed_id=17965&_unique_id=62401aea7dd0a

अभ्‍यर्थी के परीक्षा में शामिल न होने पर पुन: परीक्षा का प्रावधान नहीं : UPSC ने सुप्रीम कोर्ट को दी जानकारी

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प्रतीकात्‍मक फोटो नई दिल्‍ली : संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) से कहा है कि यदि कोई अभ्यर्थी किसी भी कारण से निर्धारित तिथि पर परीक्षा में शामिल होने में विफल रहता है, जिसमें बीमारी या दुर्घटना के कारण परीक्षा देने में असमर्थता शामिल है, तो फिर से परीक्षा आयोजित करने का कोई प्रावधान नहीं है.शीर्ष अदालत तीन उम्मीदवारों की याचिका पर सुनवाई कर रही है जिन्होंने यूपीएससी-2021 प्रारंभिक परीक्षा पास कर ली थी लेकिन कोविड-19 संक्रमित पाए जाने के बाद मुख्य परीक्षा के सभी पेपरों में उपस्थित नहीं हो सके और अब परीक्षा में बैठने के लिए एक अतिरिक्त मौका दिए जाने की मांग कर रहे हैं. यह भी पढ़ें Source link https://myrevolution.in/politics/%e0%a4%85%e0%a4%ad%e0%a5%8d%e2%80%8d%e0%a4%af%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%a5%e0%a5%80-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%aa%e0%a4%b0%e0%a5%80%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%b7%e0%a4%be-%e0%a4%ae%e0%a5%87%e0%a4%82/?feed_id=17448&_unique_id=623b4794e15d9

Pegasus Case : शुक्रवार को होगी सुनवाई, SC की ओर से नियुक्त समिति ने सौंप दी है अंतरिम रिपोर्ट

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Pegasus Case में शुक्रवार को सुनवाई करेगा सुप्रीम कोर्ट. नई दिल्‍ली: स्पाइवेयर पेगासस मामले (Spyware Pegasus Case) की सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई (Supreme Court Hearing in Pegasus Case) अब बुधवार को नहीं शुक्रवार यानी 25 फरवरी को होगी. मंगलवार को सुनवाई की तारीख में बदलाव किया गया है. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने शीर्ष अदालत के सामने इसके लिए आग्रह किया था, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने मान लिया है. इस मामले में बुधवार को सुनवाई होनी थी. इसपर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने चीफ जस्टिस एन वी रमना की बेंच से कहा कि पेगासस मामले में कल सुनवाई होनी है लेकिन वो PMLA मामले की सुनवाई में होंगे, इसलिए मामले की सुनवाई शुक्रवार के लिए टाल दी जाए.  यह भी पढ़ें उनके आग्रह पर CJI ने कहा कि ठीक है इसकी सूचना पक्षकारों को दे दी जाए. अब इस केस में CJI रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच शुक्रवार को सुनवाई करेगी. ये भी पढ़ें :   "न्यूयॉर्क टाइम्स ने भयानक गलती की": ताजा Pegasus विवाद पर NDTV से बोले पूर्व राजनयिक बता दें कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित जस्टिस आर रवींद्रन कमेटी...

'चिदंबरम ने 2014 में कैबिनेट की सिफारिश के बिना दिया OROP पर बयान' : केंद्र ने SC में किया अपना बचाव

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सरकार ने विसंगति के लिए पी चिदंबरम को जिम्मेदार ठहराया (फाइल फोटो) नई दिल्ली: सशस्त्र बलों में वन रैंक वन पेंशन (OROP) को लेकर सोमवार को शीर्ष न्यायालय में सुनवाई हुई. केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष वन रैंक वन पेंशन (OROP) पर अपना बचाव किया. सरकार ने 2014 में संसदीय चर्चा बनाम 2015 में वास्तविक नीति के बीच विसंगति के लिए पी चिदंबरम को जिम्मेदार ठहराया. केंद्र ने 2014 में संसद में वित्त मंत्री पी चिदंबरम के बयान पर विसंगति का आरोप लगाया. केंद्र ने कहा कि चिदंबरम का 2014 का बयान तत्कालीन केंद्रीय कैबिनेट की सिफारिश के बिना दिया गया था.  यह भी पढ़ें केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में अपना हलफनामा दायर किया. केंद्र ने कहा कि रक्षा सेवाओं के लिए OROP की सैद्धांतिक मंजूरी पर बयान तत्कालीन वित्त मंत्री पी चिदंबरम द्वारा 17 फरवरी, 2014 को तत्कालीन केंद्रीय कैबिनेट की सिफारिश के बिना दिया गया था. दूसरी ओर, कैबिनेट सचिवालय ने 7 नवंबर, 2015 को भारत सरकार (कारोबार नियमावली) 1961 के नियम 12 के तहत प्रधानमंत्री की मंजूरी से अवगत कराया. सुप्रीम कोर्ट 23 फरवरी को अब इसे मामले पर सुनवाई करेगा.  16 फरवरी...

''वन रैंक, वन पेंशन कैसे लागू किया जा रहा, कितने लोगों को हुआ लाभ'' : सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा सवाल

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वन रैंक, वन पेंशन मामले में सुप्रीम कोर्ट अगली सुनवाई 23 फरवरी को करेगा नई दिल्‍ली : सशस्‍त्र बलों में 'वन रैंक वन पेंशन' ( One Rank One Pension या OROP)को लेकर  सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court)ने अहम सवाल उठाए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है, 'केंद्र की अतिशयोक्ति OROP नीति पर  आकर्षक तस्वीर प्रस्तुत करती है जबकि इतना कुछ सशस्त्र बलों के पेंशनरों को मिला नहीं है.' इसके साथ ही SC ने केंद्र से पूछा है कि  OROP कैसे लागू किया जा रहा है और इससे कितने लोगों को लाभ हुआ है? सुनवाई के दौरान जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने संसदीय चर्चा और नीति के बीच विसंगति पर याचिकाकर्ताओं की दलीलों का हवाला दिया. जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि समस्या यह है कि पॉलिसी पर आपकी अतिशयोक्ति वास्तव में दिए गए लाभ तुलना में बहुत अधिक आकर्षक तस्वीर प्रस्तुत करती है. इस पर केंद्र ने अपना बचाव करते हुए कहा कि नीति पर फैसला केंद्रीय मंत्रिमंडल ने लिया है. यह भी पढ़ें NIA का जम्मू-कश्मीर में बड़ा एक्शन, आतंकवाद से जुड़े मामलों में कई जगहों पर छापे सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को बताया कि OROP की अभी तक कोई वैधानिक...

प्रतिष्ठा का प्रश्न न बनाएं : सुसाइड मामले की जांच CBI से करवाने के मामले में तमिलनाडु सरकार से SC

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सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार से कहा कि हाईकोर्ट द्वारा CBI जांच के आदेश को “ प्रतिष्ठा का मुद्दा" ना बनाएं नई दिल्ली: तमिलनाडु (Tamilnadu) में 17 साल की छात्रा लावण्या की मौत के  मामले की CBI जांच जारी रहेगी. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने फिलहाल CBI जांच में दखल देने से इनकार किया है हालांकि तमिलनाडु DGP की याचिका पर नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट में याचिकाकर्ता और CBI को नोटिस देकर जवाब मांगा है. तमिलनाडु की ओर से DGP की ओर से मुकुल रोहतगी ने कहा कि ये जहर खाकर खुदकुशी का मामला है, लेकिन हाईकोर्ट इसमें लगातार आदेश दे रहा है. ये कोई धर्म परिवर्तन का मामला नहीं है. सीबीआई को सौंपे जाने के खिलाफ तमिलनाडु पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. यह भी पढ़ें सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार से कहा कि हाईकोर्ट द्वारा CBI जांच के आदेश को “ प्रतिष्ठा का मुद्दा" ना बनाएं.  राज्य पुलिस द्वारा एकत्र किए गए सबूतों को सीबीआई को सौंपा जाए. राज्य के DGP ने मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै बेंच के उस फैसले को चुनौती दी है. DGP ने कहा है कि हाईकोर्ट के CBI जांच...

लावण्‍या मौत केस :जबरन धर्मांतरण-धोखाधड़ी पर नियंत्रण के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल

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याचिका में नाबालिग लावण्या की मौत की वजह की जांच किसी स्वतंत्र एजेंसी से कराने की मांग भी की गई है नई दिल्‍ली : धोखाधड़ी और जबरन धर्मांतरण कराए जाने को नियंत्रित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) में याचिका दाखिल की गई है, इसमें केंद्र और राज्यों से कड़े कदम उठाने का निर्देश देने की मांग सुप्रीम कोर्ट से की गई है. याचिका में तमिलनाडु में नाबालिग लावण्या की मौत (Lavanya Suicide Case) की वजह की जांच किसी स्वतंत्र एजेंसी से कराने की मांग भी की गई है . यह जांच NIA या CBI जैसी स्वतंत्र एजेंसी से कराए जाने की मांग की गई है, हालांकि मद्रास हाईकोर्ट ने सोमवार को ही मामले की CBI जांच के आदेश दिए हैं.  यह भी पढ़ें फिल्‍म 'Why I killed Gandhi' के OTT पर रिलीज के खिलाफ याचिका पर सुनवाई से SC का इनकार इसके अलावा याचिका में कानून आयोग से 3 महीने के भीतर धोखाधड़ी से धर्मांतरण कराए जाने के मामले पर विधेयक और धर्मांतरण को नियंत्रित करने के लिए एक रिपोर्ट तैयार करने का निर्देश देने की मांग की गई है. बीजेपी नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में धर्मांतरण को लेकर एक याचिका...

कंगना रनौत के विवादित ट्वीट्स के खिलाफ याचिका पर सुनवाई से SC का इनकार, यह बताई वजह...

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याचिका में कंगना रनौत के भविष्य के सभी सोशल मीडिया पोस्ट को सेंसर करने के की मांग की गई थी नई दिल्‍ली : बॉलीवुड अभिनेत्री कंगना रनौत (Kangana ranaut) के विवादित ट्वीट्स के खिलाफ याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई से इनकार कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सोशल मीडिया पोस्ट पर पहले ही मामले दर्ज हो चुके हैं, पुलिस जांच कर रही है याचिकाकर्ता ने निजी शिकायत दी है, उस पर ही कार्यवाही करें. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आपराधिक मामले में जनहित याचिका के तहत राहत नहीं मांगी जा सकती.कानून के शासन में हर उल्लंघन के उपचार की व्यवस्था है. आप इस मामले में निजी शिकायत पर कार्यवाही को आगे बढ़ा सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को कहा, ' आप इस मामले में  शिकायतकर्ता तक नहीं हैं. तीसरे पक्ष के तौर पर आप इस मामले में कैसे केसों को एक थाने में ट्रांसफर मांग सकते हैं. अगर किसी के खिलाफ देश के अलग- अलग 15-20 थानों में केस दर्ज हैं तो आप कैसे एक थाने में जांच की मांग कर सकते हैं? अगर कोई आरोपी इस मामले को लेकर आता तो अदालत ये बात मान सकती थी. यह भी पढ़ें इससे पहले सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता चरणज...

कोविड लहर के बीच SC ने दी राहत, अपील और आवेदन दाखिल करने की सीमा अवधि को बढ़ाया

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कोर्ट ने मामले दाखिल करने की सीमा अवधि में ढील (फाइल फोटो) नई दिल्ली: कोविड की मौजूदा लहर के बीच अदालती मामलों की अपील दाखिल करने में वादियों को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी राहत दी.  सुप्रीम कोर्ट ने अपील, आवेदन और सूट दाखिल करने के लिए तय समयसीमा की अवधि को बढ़ा दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने 28 फरवरी, 2022 तक देशभर में सभी सामान्य और विशेष कानूनों के तहत मामले दाखिल करने की सीमा अवधि में ढील दी. भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना, जस्टिस एल नागेश्वर राव  और  जस्टिस सूर्यकांत के पीठ ने इस संबंध में अपने 23 मार्च, 2020 के आदेश को बहाल कर दिया. यह भी पढ़ें कोर्ट ने कहा कि 15 मार्च, 2020 से 28 फरवरी, 2022 तक की अवधि सभी न्यायिक या अर्ध-न्यायिक कार्यवाही के संबंध में किसी भी सामान्य या विशेष कानूनों के तहत समयसीमा अवधि से बाहर रहेगी.      दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना महामारी में लागू प्रोटोकॉल और लॉकडाउन के चलते वादियों को उनके मामलों मे अपील दाखिल करने के लिए तय समयावधि मार्च 2020 और अप्रैल 2021 में बढ़ाने का आदेश दिया था. इसके बाद पिछले साल सितंबर में कोरोना महामारी में राहत मिलने औ...

समाचारों के साथ विचारों को मिलाना ‘खतरनाक कॉकटेल’: चीफ जस्टिस

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उन्होंने न्यायपालिका पर हमलों का उल्लेख करते हुए कहा कि प्रेस को न्यायपालिका में विश्वास प्रकट करना चाहिए. मुंबई: भारत के प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण ने बुधवार को कहा कि स्वस्थ लोकतंत्र केवल निडर और स्वतंत्र प्रेस के साथ ही आगे बढ़ सकता है, लेकिन समाचारों के साथ विचारों का मिश्रण खतरनाक कॉकेटल है. प्रधान न्यायाधीश ने खबरों में वैचारिक पूर्वाग्रहों को मिलाने की प्रवृत्ति के प्रति भी पत्रकारों को आगाह किया और कहा कि तथ्यात्मक खबरों में व्याख्या और रायशुमारी से बचना चाहिए. आजकल रिपोर्टिंग में मैं एक और चलन देख रहा हूं कि खबर में वैचारिक रुझान और पूर्वाग्रह आ जाता है. खबरों में विचारों का मिश्रण खतरनाक कॉकेटल है. यह भी पढ़ें सरकार को हर स्कूल, कॉलेज में लाइब्रेरी व खेल का मैदान सुनिश्चित करने की जरूरत : चीफ जस्टिस प्रधान न्यायाधीश मुंबई प्रेस क्लब द्वारा डिजिटल माध्यम से आयोजित ‘रेड इंक्स अवार्ड' समारोह में बोल रहे थे. उन्होंने सभी विजेताओं को सम्मानित करते हुए इस बात पर रोशनी डाली कि मजबूत लोकतंत्र के लिए पत्रकारिता और सच्चे रिपोर्ताज कितने जरूरी हैं, वहीं उन्होंने खबरों को ‘एक तरह...